माता—पिता का अपने बच्चों से संबंध मानवता के लिये एक वरदान है. जहां एक ओर हमारे शास्त्रों ने माता—पिता को पूजनीय कहा है वहीं दूसरी ओर विलियम वर्डस्वर्थ जैसे महाकवि ने बालक को माता—पिता से श्रेष्ठ बताया है. बालक—बालिका विधाता द्वारा दी गयी अमूल्य निधि है.
जैसे—जैसे एक बच्चा बङा होता जाता है, उससे भावनात्मक परिपक्वता, बुद्धि एवं मानवीय गुणों का विकास तथा विवेकशीलता की उम्मीद की जाती है. यदि माता—पिता चाहें तो वे बालक के निरंतर विकास में सहायक हो सकते हैं. बालक एवं उसका पूरा परिवार आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं बौद्धिक रूप से चाहें कहीं से भी शुरुआत करें, यदि माता—पिता पूरे परिवार के विकास के लिये प्रयत्नशील रहें तो बालक स्वतः सही दिशा में विकास करता है. इस तरह एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है.
माता—पिता भावनात्मक रूप से परिपक्व हों तो बच्चे भी धैर्यवान होतें हैं. यदि माता—पिता अपने से बङों का सम्मान करते हैं तो बच्चे भी अपने माता—पिता व अन्य बङों के प्रति सम्मान महसूस करते हैं. बच्चे अधिकांशतः अपने माता—पिता के गुणों का आइना होते हैं. वयस्क होने के बाद जब वे अपना जीवन अपने हाथ में लेने योग्य हो जाते हैं तो कभी—कभी वे माता—पिता से श्रेष्ठ एवं उनकी अपक्षाओं से भी आगे निकल सकते हैं. किंतु एक खुशनुमा एवं सफल जीवन की नींव माता—पिता के हाथों आसानी से डाली जा सकती है. इसलिये माता या पिता को हर कदम पर अपने बच्चों के लिये एक आदर्श बनना आवश्यक है, इसके अलावा माता—पिता अपने बच्चे के लिये भावनात्मक संबल का बहुत बङा स्त्रोत होते है. बच्चा अपने जीवन में बहुत आगे जा सकता है यदि उसे यह संदेश मिलता रहे कि "मैं तुम्हारे साथ हूं". किंतु एक बच्चे के करियर के लिये अत्यधिक महत्वकांक्षी होना उस पर अनुचित दबाव डाल सकता है
यदि बच्चा परिवार, अपने आस-पास के वातावरण, अपने विद्यालय , और इन सब के साथ समाज के साथ एकीकृत हो जाये तो ना सिर्फ उस का तीव्र विकास संभव है, बल्कि उस में परिपक्वता और बुद्दिमत्ता भी तेजी से आती है| इस एकीकरण या सामंजस्य का पहला पाठ भी अभिभावक ही बच्चे तो पढ़ा सकते हैं जब वो स्वयं को परिवार और बच्चों के भविष्य के साथ एकीकृत करते हैं| एक अभिभावक के लिए शायद सबसे उपयुक्त यही है की वो स्वयं को समर्पित करे अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए| यही ईश्वर और मानवता के लिए हमारी सच्ची सेवा है|
स्वयं का समर्पण ही पर्याप्त नहीं है, माता-पिता को बच्चों के सही विकास के लिए घर एवं आस-पास का वातावरण भी ऐसा बनाना होगा जिसमे बच्चे का सही एवं सर्वांगीण विकास हो सके| समय पर लोगों की आर्थिंक या भावनात्मक मदद करना, उनसे सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना, ईमानदारी, सामूहिक विकास के लिए प्रयास, इत्यादि कुछ ऐसे कदम हैं जिनके द्वारा न सिर्फ हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं, बल्कि अपने बच्चों तो सही वातावरण और संस्कार भी दे सकते हैं| एक अभिभावक के लिए शायद सबसे उपयुक्त यही है की वो स्वयं को समर्पित करे अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए| यही ईश्वर और मानवता के लिए हमारी सच्ची सेवा है|
यदि अभिभावक स्वयं को अपने सर्जक के साथ एकीकृत रखें, उसमें श्रद्धा एवं समर्पण का भाव रखें, तो बच्चे का विकास भी एक सकारात्मक सोच के साथ होगा और वो स्वयं को न सिर्फ परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर बना पायेंगे| बच्चों की परवरिश की जो जिम्मेदारी उसे मिली है वो ईश्वर के एक वरदान की तरह है| यदि हर अभिभावक ये समझ ले तो धरती को अपराध, भ्रष्टाचार , और अन्य तमाम बुराइयों से मुक्त किया जा सकता है| तारे हमें जगमगाते दिखाई देते है क्योंकि वे हमसे बहुत दूर हैं, लेकिन हमें पता है की असल में वो प्रकाश का भण्डार हैं| अभिभावक यदि चाहें तो बच्चों में छुपे प्रकाश को जागृत कर भविष्य के समाज को प्रकाशवान और उज्जवल बना सकते हैं| आज का हर बालक आने वाले कल का सितारा है|